सुधा चंद्रन नृत्य जगत का एक ऐसा नाम है
जिन्होंने विकलांगता को बोना साबित कर आधी आबादी को एक नया नजरिया देते हुए अपनी
मंजिल हासिल की। वर्ष 1981 में एक दुर्घटना में सुधा का एक पैर हमेशा के लिए जिस्म
से जुदा हो गया। मगर उन्होंने कृत्रिम पैर के जरिए अपनी इस कमी को पूरा किया और
नृत्य जगत में अपनी एक अनूठी छाप छोड़ी। वर्तमान में सुधा कई टीवी सीरियल्स में भी काम कर रही है। हमने की नृत्यांगना सुधाचंद्रन से बातचीत। प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य
अंश-
नृत्यांगना (डांसर) बनने का ख्याल कैसे आया?

नृत्य का आपके व्यक्तिगत जीवन पर किस प्रकार प्रभाव पड़ा है?
बहुत प्रभाव पड़ा है। (फिर थोड़ा रुककर) डांस हैज लॉट ऑफ डाइमेंश्नस इन माई लाइफ ! शुरुआत में मैं अपनी मां के
लिए डांस करती रही, फिर एक ऐसा
समय भी आया जब यह मेरी हॉबी बन गई। लेकिन मेरे एक्सीडेंट के बाद यह मेरे लिए एक
चैलेंज-सा बन गया। एक हॉबी की तरह जिसकी शुरूआत हुई थी, वो
एक चैलेंज बनकर मेरे सामने खड़ा हो गया। जब मैंने वो चैंलेज भी पार किया तो लगा कि
जिंदगी में सब कुछ मिल गया है। आज जब भी मैं डांस करती हुं तो मुझे महसूस होता है
कि जिंदगी की कई प्रोबलम्स सोल्व हो गई है। मैं हमेशा कहती भी हूं कि जब भी आप दिल
से डांस करते हैं तो जिंदगी की कई परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है।
बदलते परिपेक्ष्य में नृत्य को किस नजरिए से देखती है?
डांस तो हर जमाने में एक ही
है। यह कह सकते है कि फोर्म ऑफ डांस काफी बदल रहे हैँ। अगर आप देखे तो आज वेस्टर्न
डांस का चलन बहुत ज्यादा बढ़ गया है लेकिन दूसरी ओर क्लासिकल और सेमी-क्लासिकल
डांस भी वापस चलन में आ रहा है। क्लासिकल डांस इज द मदर ऑफ ऑल डांसिज।
नाचने से तन स्वस्थ्य, मन प्रसन्न और आत्मा तृप्त होती है, क्या आप इसे
मानते हैं?
यस, आर्ट इज डिवाइन। जब भी मैं
डांस करती हूं तो लगता है कि मैं कही ना कही परमात्मा से जुड चुकी हूं। मेरा मानना
है कि अगर ऐसा किसी के साथ नही होता तो वह कभी डांस नही कर सकता। डांस कभी भी
हाथ-पैर हिलाने से नही होता। डांस दिल से जुडता है और जब कोई भी आर्ट फॉर्म दिल से
जुड़ता है तो उसका तात्पर्य यही है कि आप डायरेक्टली परमात्मा से जुड़ जाते हो।
आप जब नाचते हुए पीक पर पहुंचती है तो उस समय क्या फील करती है?
कुछ फील नही होता, मैं सबकुछ
भूल जाती हूं। नचाने के दौरान मैं अपनी एक अलग दुनिया क्रिएट करती हूँ। उसी दुनिया
मैं रम जाती हूं। मुझे फिर कोई ऑडिएस नजर नही आती, कोई सोंग
सुनाई नही देता, कोई ऑर्केस्ट्रा दिखाई नही आता। हां,
स्टेज पर जाने से पहले जरूर मन मैं सोचती हूं कि कोई गलती ना हो और
भगवान से प्रार्थना करती हूं कि यह प्रोग्राम सफल रहे।
तन की छिरकन और मन की थिरकन में कैसा नाता होता है?
मेरा मत इन्हें लेकर छोड़ा अलग है। मैं मानती हूं कि दोनों एक ही है। क्योंकि
अगर आप मन से थिरकेंगे तो आपका पैर थिरकेगा और जब आपका पैर थिरकता है तो तब बदन
थिरकेगा। हां, यह हो सकता
है कि खाली परफोर्म करने के लिहाज से आप स्टेज पर जाए तब मन की थिरकन गायब रहती
है। लेकिन उसमें रियलिटी नजर नही आती, परफोर्मेंस केवल
बनावटी नजर आता है। लेकिन जब आप दिल से परफोर्म करने के लिए स्टेज पर जाते हैं तो
दिल, मन, तन सब साथ-साथ थिरकते हैँ।
एक डांसर को सबसे ज्यादा संतुष्टी कब मिलती है?
किसी भी परफोर्मेंस के बाद जब लोग खड़े हो जाते हैं, हॉल तालियों से गूंज उठता है, उससे
ज्यादा संतुष्टी किसी डांसर को ओर कहां मिलेगी? जैसे में एक दैवी का रूप धारण
करती हूं, शक्ति के नाम
से एक बैले करती हूं, कृष्ण पर भी करती हूं, परफोर्मेंस के बाद जब ऑडियंस में से कोई आकर यह कहता है कि हम नही जानते
कि दैवी और कृष्ण कैसे दिखते थे, मगर आपके जरिए हम इतना तो
समझे कि शायद दैवी का यही रूप होगा और हम आपकी परफोर्मेंस के जरिए उनसे जुड सकें।
तो मेरे लिए यब सबसे ज्यादा संतुष्टी वाला पल होता है।
एक डांसर के लिए रेगुलर प्रैक्टिस करना कितना जरूरी है?
बहुत जरूरी है... आप कितने ही प्रोफेशनल डांसर हो, कितने ही साल का तजुर्बा हो, मगर
प्रतिदिन नियमित रूप से रियाज एक डांसर को डांस की कला से नियमित रूप से जोडे रखता
है। मैं टेलीविजन सीरियलस कर रही हूं इसलिए मैं नियमित रूप से डांस को समय नही दे
पाती, लेकिन जब भी समय मिलता है तो रियाज जरूर करती हूं।
इसके अलावा डांस से जुड़े रहने के लिए महीने में चार-पांच शो भी जरूर करती हूँ।
इन दिनों टीवी पर आ रहे डांस रियलिटी शो के बारे में क्या कहेंगी?
कमाल के रियलिटी शोज आ रहे हैं। हम जैसे डांसर्स के लिए भी यह काफी अहम है
क्योंकि हम लोग भी इनसे बहुत कुछ सीखते हैँ। जैसे कि अभी डीआईडी सुपर मॉम्स चल रहा
है। उसमें उन महिलाओं को अपने सपने अब पूरे करने का मौका मिल रहा है जो किसी ना
किसी परिस्थिति में पीछे छूट गए थे। ऐसी डांस रियलिटी शोज कितनी महिलाओं के सपने
को एक बार फिर पंख लगाएगें?
नए डांसर को सामने लाने में इनकी क्या सार्थक भूमिका हो सकती है?
नए डांसर्स को ग्रुम करने में रियलिटी शोज का बहुत बड़ा हाथ है। शोज देश के
कोने-कोने में छिपी हुई प्रतिभा को खोजते हैं, टेलेंट को मंच देते हैं, और देखते ही
देखते वह सेलीब्रेटी बन जाते हैं।
इंडियन क्लासिकल डांस की बहुत समृद्ध परंपरा रही है, फिर आजकल यंगस्टर्स उनकी बजाए पॉपुलर फिल्मी या वेस्टर्न डांस
को ज्यादा क्यों पसंद करते है?
यह तो कॉमर्शियलिटी है
जिसकी वजह से यंगस्टर्स का रुझान पॉपुलर फिल्मी या वेस्टर्न डांस की ओर रूझान
ज्यादा बढ़ रहा है। हम भी फिल्मी डांस करते हैं। लेकिन यह भी सच है कि अगर आपका
बेस क्लासिकल डांस का है तो आप डांस के किसी भी फॉर्म को आसानी से कर सकते हैँ।
क्लासिकल डांसर के बदन में सेंस ऑफ रिदम, टाइमिंग, म्यूजिक सबकुछ होता है, इसीलिए आसानी से डांस की
कोई भी फॉर्म एडोप्ट की जा सकती है। थोड़ी प्रोब्लम यह हो सकती है कि डांस फॉर्म
को एडोप्ट करने में कुछ समय लगे। मगर ऐसा नही हो सकता है कि क्लासिकल डांसर कोई
दूसरा फॉर्म ना कर सकें।
फिजिकली डिसेबल होने के बाद आपको अपनी मंजिल पाने के लिए किन-किन परिस्थितियों
का सामना करना पड़ा?
जब आप कुछ करना चाहते हो तो
फिर डिसेबिलिटी हो या नॉन डिसेबिलिटी, इससे कोई फर्क नही पड़ा। बस आपका दिल और
दिमाग बहुत स्ट्रोंग होना चाहिए। यदि आप टारगेट बनाकर अपने मंजिल पर आगे बढ़ेंगे
तो समस्याएं तो आएंगी, मगर एक दिन मंजिल पर भी आप पहुंच ही जाएगेँ।
नृत्य के क्षेत्र में कैरियर बनाने वाले युवाओं को किन बातों का ध्यान रखना
चाहिए?
प्रोफेशनलिज्म बहुत ज्यादा
जरूरी है। आजकल देखा-देखी करने की प्रोबल्म बहुत ज्यादा हो रही है। जैसे मेरी
फ्रेंड डांसर बनेगी तो मैं भी बनूंगी आदि। यह नही होना चाहिए। आपकी कमिटमेंट बहुत
जरूरी है। आज के डांसर्स तो बहुत ही लक्की है क्योंकि जब हमने डांस की शुरूआत की
थी तो तब घर से पैसे लगाकर डांसर बना जाता था। लेकिन आज डांसिंग का क्षेत्र
बिल्कुल बदल गया है। शुरूआती दौर में आप कही भी छोटे-छोटे प्रोग्राम में हिस्सा ले
सकते हैं, वहां से भी कुछ ना कुछ जरूर मिलता है। अच्छे डांसर बन जाते हैं तो बहुत
एक्सपोजर है, कोरियोग्राफर के भी रास्ते खुले है। डांस सीखने के बाद डांसिग इस्टीट्यूट
खोलकर भी आप अपने प्रोफेशन को आगे बढ़ा सकते हैँ। पेरेंट्स को भी इस ओर ध्यान देना
चाहिए आज के समय में डांस प्रोफेशन के तौर पर बहुत ज्यादा प्रोफिटेबल है। वर्तमान
में परिस्थितियां बदल चुकी है और आने वाले समय में डासिंग के फील्ड में बहुत स्कोप
है। बशर्ते दिल से मेहनत करें।
फ्यूचर को किस तरह देखती हैं?
मैं फ्यूचर को कभी प्लान नही करती है। मेरा मानना है कि यदि आप प्रजेंट को
अच्छे से जी जाते हो तो फ्यूचर से डरने की जरूरत नही होती। मैं प्रजेंट पर पूरा
फोकस करती हूँ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें