शनिवार, 17 सितंबर 2016

एजुकेशन सिस्टम है विकसित सीविलियन लूट (व्यंग्य)

लूट कई तरह की होती है। रात के अंधरे में यदि कोई घर का कीमती सामान साफ कर जाए तो उसे आमतौर पर लूट कहते हैं और सरेराह यदि कोई गांधी विरोधी हरकतों के साथ आपको अपने अधीन करके आपका कीमती सामान हड़प ले, तो उसे भी लूट ही कहा जाता है। हालांकि यह भी सच है कि पहली घटना को सरकारी दस्तावेजों में चोरी और दूसरी घटना को छीना-झपटी में रखने का चलन-सा बना हुआ है। मगर पिछले काफी समय से एक अन्य प्रकार की लूट भी बहुतायात में देखने को मिल रही है। आप की सहमति और अपनी जबरदस्ती से अगर आप की जेब पर कोई डाका डाल दे तो आखिर उसे क्या कहेंगे? हैं ना अजीब बात। मगर ऐसा संभव है साहब।
अभी पिछले दिनों एक नेता टाइप व्यक्ति ने दत्ता साहब को भरोसा दिलवाया कि वो उनका परमोशन करवा देगा। बस छोडा-सा खर्च लगेगा। दत्ता साहब जानते थे कि ना तो वो परमोशन की शर्ते पूरी करते है और ना ही उसके लिए शैक्षिक रूप से पात्र है। फिर भी उन्होंने खुशी-खुशी से नेताजी की जेब गरम कर दी। दत्ता साहब का मन इस बात को लेकर उदास था कि यदि गांधी जी ने अपना काम ठीक प्रकार नही किया तो कंगाली में आटा गिला हो जाएगा। उधर, चिंता इसलिए भी थी कि काम ना होने की स्थिति में उन्हें उनके गांधीजी वापस तो मिलने से रहे और यह बात किसी के साथ शेयर भी नही की जा सकती थी। खैर, इस प्रकार के मामले को इस टाइप की लूट का प्रारंभिक काल कहे तो गलत नही होगा।
इस टाइप की लूट की विशेषताएं भी अनेक है और जैसे-जैसे लूट का यह टाइप विकसित हो रहा है वैसे-वैसे इसके एडवांस्ड वर्जन भी निकल रहे हैँ। इसकी विकासयात्रा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया जाए तो किताब तो जनाब निश्चित रूप से लिखी ही जा सकती है। खैर, किताब की बात छोडिए और हाल फिलहाल में चल रहे इस टाइप की लूट के वर्जन से आपको रूबरू कराने का प्रयास करता हूँ। आज इस टाइप की लूट पूरी तरह से विकसितों की श्रेणी में आ चुकी है। हालांकि अभी भी इसके नए वर्जन लगातार लॉन्च हो रहे हैँ और पता नही कब कौन-सा वर्जन लॉन्च हो जाए और आप उसकी चपेट में आ जाए।
दरअसल, चपेट में आने के बाद ही कोई बता सकता है कि यह फलां-फलां टाइप की लूट का एडवांस्ड वर्जन है। शिक्षित वर्ग भी इन एडवांस्ड वर्जन का खूब लाभ उठा रहा है। कल ही मैं एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी से एक पाठ्यक्रम का दाखिलापत्र लेने गया तो उसकी एवज में मुझसे 1500 रूपये मांगे गए, हालांकि दाखिला पत्र एक पेज का था मगर उसके साथ संग्लन सामग्री (जिसकी मुझे कोई आवश्यकता नही थी) कम से कम 150 पेज की होगी, जोकि मुझे साथ में चेप दी गई। तब पता चला की यह भी एक एडवांस्ड वर्जन है। पुलिसकर्मी द्वारा अपनी जेब गरम कर बिना कागजात पूरे हुए भी वाहन को छोड़ देना तो अब बिते जमाने की बात हो गई है साहब। वाई-फाई और फोर-जी का जमाना है हाई-फाई होना तो लाजमी है। देखिए किस प्रकार इस टाइप की लूट के एडवांस्ड वर्जन हावी हो चुके है। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना कराने की एवज में मोटी रकम का वसूलना( बड़े-बड़े मंदिरों में प्री-बुकिंग की जाती है और महीनों बाद की तिथि दी जाती है आरती के लिए जैसे प्रभु के यहां बही-खाते में सीधे नाम दर्ज हो गया हो, फलां-फलां तारीख में फलां-फलां की अरदास सुनी जाएगी), रियल स्टेट में प्रोपर्टी खरीदनी हो तो कार जैसे महंगे तोहफे इनाम में और बताया जाता है कि प्रमोशनल ऑफर है साहब (गौया डीलर, तेरे पास जब पहले से ही इतने पैसे है तो क्यों बेरोजगारों का रोजगार छिन रहा है भाई), बाजार में 90 प्रतिशत ऑफ का फंडा (जब 90 प्रतिशत छूट देनी ही है तो क्यों इतनी हाई एमआरपी रखे हो), प्राइवेट स्कूल में एडमिशन के साथ किताबों, ड्रेस, स्टेशनरी आदि सभी सामग्रियों की ब्रिकी वो भी रेट टू रेट पर (भाई, स्कूल चला रहे हो या डिपार्टमेंटल स्टोर), इंश्योरेंस (कराओं कितने लाख का, खुद को मिलनी चवन्नी नहीं, बाद में परिजनों को मिले इसकी भी कोई गारंटी नही), पूरे शरीर का चैकअप कराओ आधे दाम पर (दो टेस्टों की जरूरत हो तो भी ऐसी स्कीमें जबरन चिकित्सकों द्वारा थमा दी जाती है, मरजानिए पैसे पेड़ पर नही उगते), डबल बैड के साथ टेबल फ्री, चेयर के साथ स्टूल फ्री, चाय की पत्ती में गिजर भी मिल सकता है ईनाम में (गीजरदेवा, चाय क्यूं बेच रहा है इतने मंहगे दामों पर), मंदिर का चंदा, गली में जागरण का फंडा आदि इस प्रकार के लूट के वर्जन्स के कुछेक ही नमूने है। मुझे पूरा यकीन है ऐसे ना जाने कितने एडवांस्ड वर्जनों से आप भी कभी ना कभी रूबरू हुए होंगे और पूरी उम्मीद इस बात की है कि रूबरू होते भी रहेंगे। मैं इसे विकसित सिविलियन लूट कहूं तो गलत नही होगा और उम्मीद है कि आप भी इसे स्वीकार करेंगे।
और अंत में सिविलाइज्ड सीविलियन लूट को परिभाषित करें तो कह सकते हैं कि दूसरे की जेब से सभ्य तरीके से मगर जबरन गांधीजी को निकालना सिविलाइज्ड सीविलयन लूट कहलाता है और गजब की बात तो यह है कि इस लूट में पीड़ित लूटकर्ता को पहचानता भी है मगर हाल-ए-दिल किसी को बताता भी नही।

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