वर्ल्ड
रेटिना वीक (19 से 25 सितंबर)
आंखें
हमारे शरीर के वो महत्वपूर्ण अंग हैं, जो हमें पूरी दुनिया से परिचित कराने का कार्य
करते हैं. अकसर हम इनकी देखभाल में लापरवाही बरतते हैं और इनका महत्व तब पता चलता
है, जब इन्हें नुकसान पहुंच जाता है, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है. आंख का
महत्वपूर्ण हिस्सा रेटिना है. इसमें समस्या होने पर कई ऐेसे रोग होते हैं, जो नेत्रहीन बना सकते हैं. वर्ल्ड रेटिना वीक पर
यह
आलेख देता विशेष जानकारी-
रेटिना आंख के अंदर मौजूद एक नाजुक प्रकाश संबंधी परत है, हमारी आंख को देखने के लिए रेटिना की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। हम जो कुछ भी देखते है वह प्रकाश (लाइट) के माध्यम से आंख के अंदर मौजूद रेटिना पर डलता है,रेटिना उस प्रकाश को छवि में बदलती है। तब जाकर हमारी आंखें देख पाती है।
1.डायबिटिक
रेटिनोपैथी
विश्व
में डायबिटीक रेटिनोपैथी अंधेपन का स
बसे बड़ा कारण है। यह एक ऐसी बिमारी है जिसमें डायबिटीज से ग्रस्त व्यक्ति की रेटिना रक्त पहुंचाने वाली महीन नलियों के क्षतिग्रस्त हो जाने की वजह से ठीक प्रकार से काम नही कर पाती। डायबिटीक रेटिनोपैथी का ट्रीटमेंट यदि सही समय पर ना कराया जाए तो इससे पीड़ित व्यक्ति अंधेपन का शिकार हो सकता है, जोकि लाइलाज है।
बसे बड़ा कारण है। यह एक ऐसी बिमारी है जिसमें डायबिटीज से ग्रस्त व्यक्ति की रेटिना रक्त पहुंचाने वाली महीन नलियों के क्षतिग्रस्त हो जाने की वजह से ठीक प्रकार से काम नही कर पाती। डायबिटीक रेटिनोपैथी का ट्रीटमेंट यदि सही समय पर ना कराया जाए तो इससे पीड़ित व्यक्ति अंधेपन का शिकार हो सकता है, जोकि लाइलाज है।
डायबिटीज
से ये भी हो सकता है
डायबिटिक
रेटिनोपैथी के अलावा डायबिटिज की वजह से आंखों में कई अन्य प्रकार की बिमारियां भी
देखने को मिलती है जिसमें आंखों की दृष्टि का कम हो जाना, कम उम्र में मोतियाबिंद हो जाना,
आप्टिक नर्व का प्रभावित हो जाना, आंख की
मांसपेशियों का खराब हो जाना भी शामिल है।
जाने
कैसे करता है प्रभावित
डायबिटिज
होने पर ब्लड में शूगर की मात्रा बढ़ जाती है। शूगर की बढ़ी हुई मात्रा खून ले
जाने वाली नलियों को क्षतिग्रस्त कर देती है। कई बार तो नलियां नियमित रुप से शूगर
बढ़ने के कारण रक्त स्राव तक कर देती है। रेटिना तक खून की सप्लाई करने वाली
अत्याधिक महीन नलियों में भी शूगर बढ़ने के कारण कमजोरी आने लगती है। महीन नलियां
रेटिना को जरूरी पोषक तत्व और ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा नही दे पाती। जिससे
रेटिना में सूजन पैदा हो जाती है। इससे दृष्टि कमजोर होती है। धीरे-धीरे जैसे
बिमारी बढ़ती है वैसे वैसे लक्षण भी बढ़ने लगते हैँ। कमजोर हुई रक्तनलियां ईलाज के
अभाव में कई बार तो फट भी जाती है, रक्त स्राव होने की वजह से आंख में ब्लाइंड स्पाट
बना देता है।
डायबिटिक
रेटिनोपैथी केवल डायबिटिज से ग्रस्त लोगों को ही सकता है लेकिन इनमें भी कुछ खास
लक्षणों में इसके होने की संभावना ज्यादा है जोकि निम्न है-
-नियमित
अनियंत्रित शूगर रहने वाले लोगों में
-हाई
कोलेस्ट्रोल से पीड़ित में
-हाई
बीपी से पीड़ित में
ट्रीटमेंट
है जरूरी
चूंकि
डायबिटिक रेटिनोपैथी कभी भी गंभीर रूप लेने में सक्षम होती है इसलिए जब भी पता चले
तभी चिकित्सक से संपर्क कर ट्रीटमेंट कराए। डायबिटिक रेटिनोपैथी का ईलाज करने के
लिए कई प्रकार से ईलाज किया जाता है जोकि निम्न है-
फोकल
लेजर ट्रीटमेंट-इसे फोटोकोगूलेशन भी कहा जाता है। इस लेजर ट्रीटमेंट का इस्तेमाल
तब किया जाता है जब रेटिना को खून सप्लाई करने वाली महीन नलियां क्षतिग्रस्त हो
जाती है। लेजर ट्रीटमेंट में लेजर बर्न्स की मदद से क्षतिग्रस्त नलियों से रक्त
स्राव को रोका जाता है। यह ट्रीटमेंट डॉक्टर के चैंबर में ही मशीनों की मदद से
आसानी से हो सकता है।
स्कैटर
लेजर ट्रीटमेंट- इसे पेनरेटिनल फोटोकोगूलेशन भी कहते हैँ। यह लेजर ट्रीटमेंट 2
सेशन में होता है। खून में शूगर की मात्रा बढ़ने से रक्त नलियां भी अव्यवस्थित हो
जाती है। रक्त नलियां कुछ जगह मोटी तो कुछ जगह बिल्कुल महीन नजर आती है। ऐसे में
चिकित्सक स्कैटर लेजर ट्रीटमेंट की मदद से रेटिना के आसपास की रक्त नलियों को
व्यवस्थित करते हैं।
विट्रीक्टोमी-रक्त
नलियों के फट जाने की वजह से आंख में बने ब्लाइंड स्पोट को हटाने के लिए इस
ट्रीटमेंट का इस्तेमाल किया जाता है। इस शल्य चिकित्सा में आंख में चीरा लगाकर
रेटिना के आसपास ने ब्लड स्पोट को हटाया जाता है।
एक
बार ट्रीटमेंट के बाद दोबारा रेटिनोपैथी होने का भी है खतरा
यदि
आप सोच रहे हैं कि डायबिटिक रैटिनोपैथी का ट्रीटमेंट होने के बाद आप अपनी आंखों को
हमेशा के लिए डायबिटीज से बचा सकते हैं तो आप गलत हैँ। क्योंकि डायबिटिक
रेटिनोपैथी के ट्रीटमेंट होने के बाद भी इसके दोबारा होने के चांसेज कही ज्यादा
होते हैं। चिकित्सक बताते हैं कि गलत खानपान और जीवनशैली की वजह से दोबारा मरीज इस
बिमारी की चेपट में आ सकता है। इसलिए ट्रीटमेंट कराने के बाद भी आंखों की देखभाल
करें और अपनी शूगर को नियंत्रित करने की कोशिश करें।
2.रेटिनल
डिटेचमेंट
रेटिनल
डिटेचमेंट यानि रेटिना का अपनी जगह से खिसक जाना। यह आंखों की एक गंभीर बिमारी है
जिसमें रेटिना अपनी जगह से हट जाती है। आंख में रेटिना टिश्यू से घिरी होती है
लेकिन डिटेचमेंट में यह टिश्यू से हट जाती है। इस अवस्था में रेटिना ठीक प्रकार से
काम नही कर पाती जिससे पीड़ित व्यक्ति अंधेपन का शिकार भी हो जाता है। हालांकि
ट्रीटमेंट के द्वारा रेटिना को वापस ठीक किया जा सकता है। रेटिनल डिटेचमेंट होने
का खतरा तब ज्यादा बढ़ जाता है जब व्यक्ति की आंख पहले से किसी दुर्घटना में
क्षतिग्रस्त हुई हो या फिर कैटरेक्ट सर्जरी कराई हो। अगर आपके परिवार में किसी को
रेटिनल डिटैचमेंट की समस्या हो, तब भी आपको यह बीमारी हो सकती है। रेटिनल डिटेचमेंट होने के बाद व्यक्ति
को कोई दर्द नही होता लेकिन आंख ठीक प्रकार से काम नही कर पाती।
तीन
प्रकार का होता है रेटिनल डिटेचमेंट
रेटिनल
ब्रेक-इसे रेग्मैटोजिनस रेटिनल डिटेचमेंट भी कहते है। इसमें आंख के बीच में मौजूद
विट्रियस नामक फ्लूड रेटिनल टीअर से निकलने लगता है, फ्लूड निकलने की वजह से रेटिना अपने स्थान से
खिसकने लगता है।
एक्सुडेटिव
रेटिनल डिटेचमेंट-इस प्रकार में भी तरल पदार्थ रिटाना टिअर से बाहर निकलता है
लेकिन इसका कारण ट्यूमर या रेटिना मे किसी विकार की वजह से होता है। इसे
एक्सुडेटिव रेटिनल डिटेचमेंट कहा जाता है।
ट्रैक्शन
रेटिनल डिटेचमेंट-यह डायबिटिक रेटिनोपैथी की वजह से होता है। इसमें रेटिना को ठीक
प्रकार से पोषक तत्व नही मिल पाते हैँ।
यह है
रेटिनल डिटेचमेंट के लक्षण
-आंख
से देखते समय स्पाट नजर आना
-देखते
समय अंधेरा छा जाना
-पास
या दूर की दृष्टि अचानक से कमजोर हो जाना
कई
प्रकार से होता है रेटिनल डिटेचमेंट का ट्रीटमेंट
लेजर
व फ्रिजिंग-यह दोनों प्रकार बिमारी के शुरुआती चरण में इस्तेमाल किये जाते हैं।
यदि डिसप्लेसमेंट कम है तो लेजर व फ्रिजिंग विधि के माध्यम से रेटिना को ठीक किया
जाता है।
न्यूमेटिक
रेटिनोपैक्सी- यदि रेटिना अपनी जगह से बहुत मामूली हटी है तो उसके लिए न्यूमेटिक
रेटिनोपैक्सी ट्रीटमेंट किया जाता है। इसमें एक गैस के सूक्ष्म गुबारे को इंजेक्शन
के माध्यम से आंख के अंदर डाला जाता है। क्षतिग्रस्त जगह पर गैस के सूक्ष्म गुबारे
को भेजकर रेटिना के विपरीत दबाव बनाया जाता है, ऐसा करने से गैप भर जाता है। उसके बाद लेजर की
मदद से रेटिना को पुरानी जगह पर लाया जाता है।
स्क्लेरल
बक्कल-यह विधि सबसे कामयाब और पुरानी है। इस तकनीक के माध्यम से शुरुआती चरण के
रेटिनल डिटेचमेंट को ठीक किया जाता है। इस सर्जरी में आंख के अंदर मौजूद स्केलरा
(आंख में सफेद नजर आने वाला) को सिलिकन बैंड की मदद से धकेला जाता है। बैंड हमेशा
के लिए आंख में रहता है। इससे रेटिना वापस अपनी पुरानी जगह पर आ जाता है। यह
सर्जरी 2-3 हफ्ते तक रिकवर होती है। हालांकि मरीज सर्जरी के तुरन्त बाद कुछ घंटों
के अंदर घर जा सकता है।
3.मेक्यूलर
डीजेनरेशन
रेटिना
के बीच के पार्ट को मैक्यूला कहते हैं, ये नजर को केन्द्रित करने का काम करता है, इसमें विकार उत्पन्न होने पर मेक्यूलर डीजेनरेशन होता है। आमतौर पर
मैक्यूला ही हमारी पढ़ने की क्षमता, चेहरे पहचानने की क्षमता,
वाहन चलाने के लिए ध्यान केन्द्रित करने के लिए जिम्मेदार होता है।
मैक्यूला में साफ, तेज और केन्द्रीय दृष्टि के लिए
संवेदनात्मक कोशिकाएं रहती है। आयु संबंधित मैक्यूलर
डीजेनरेशन से पीड़ित व्यक्तियों में एक या दोनों नेत्रों की केन्द्रीय दृष्टि
आंशिक या पूर्ण रूप से नष्ट हो जाती है। अधिक उम्र के लोगों में यह बिमारी ज्यादा
देखने को मिलती है।
दो
प्रकार का होता है आयु संबंधी मेक्यूलर डीजेनरेशन
ड्राई
मेक्यूलर डीजेनरेशन-यह प्रकार सबसे ज्यादा देखने को मिलता है। इस प्रकार का
मेक्यूलर डीजेनरेशन धीरे-धीरे बढ़ता है। मैक्यूला में मौजूद टिश्यू के पतले होने
के कारण उसकी केन्द्रीय दृष्टि नष्ट हो जाती है। इसके अलावा ड्राई मेक्यूलर
डीजेनरेशन में मैक्यूला के आसपास फैटी प्रोटीन भी जम जाता है।
वेट
मेक्यूलर डीजेनरेशन-यह प्रकार बहुत कम देखने को मिलता है। इस प्रकार का मेक्यूलर
डीजेनरेशन बहुत तेजी से विकसित होता है। इसमें रेटिना के नीचे नयी रक्त नलियां
विकसित होती है। ये रक्त नलियां रक्त व द्रव पदार्थ का रिसाव करने लगते हैं जिससे
रेटिना कोशिकाएं गंभीर रूप से नष्ट हो जाती है जो मैक्यूला और केन्द्रीय दृष्टि को
प्रभावित करती है।
ये है
प्रारंभिक लक्षण
-छोटे
अक्षर पढने में परेशानी होना
-धुंधली
दृष्टि
-तस्वीरें
साफ ना दिखाई देना
-आंख के
सामने काला धब्बा नजर आना
-सीधी
लाइन साफ नजर ना आना
ट्रीटमेंट
है जरूरी
यह
बिमारी ऐसी है कि इसमें पता चलते ही तुरन्त ट्रीटमेंट कराने पर बिमारी का असर कम
किया जा सकता है। आंख में विकसित खराबी को दोबारा ठीक नही किया जा सकता। नई रक्त
नलियों के विकास को रोकने के लिए चिकित्सक एंटी वीईजीएफ इंजेक्शन का इस्तेमाल करते
हैं। दूसरे उपचार में चिकित्सक मरीज को फोटोडायनेमिक थैरेपी की सलाह देते हैं।
इसमें मैक्यूला डीजेनरेशन को कम करने का प्रयास किया जाता है। इसके अलावा लेजर
थैरेपी की मदद से भी असामान्य रक्त नलियों को खत्म किया जाता है। लेकिन यह बिमारी
उम्र के अंतिम पड़ाव में होती है इसलिए नेत्र दृष्टि पूरी तरह से वापस नही आ पाती।
बरते
ये सावधानी
-जब
भी धूप में निकले तो चश्मा पहन कर निलते। चश्मा पराबैगनी किरणों से आंखों को बचाने
वाला हो।
-डैस्कटॉप या लैपटॉप पर काम करते समय 15-20 मिनट
के अंतराल पर आंखों को आराम दें।
-दिन
में कम से कम 4-5 बार आंखों को ठंडे पानी से धोएं।
-टीवी
देखने के दौरान भी आंखों को आराम देते रहें।
-सुबह
के समय हरी घास पर वॉक करे। इससे आंखों की रोशनी बढ़ती है।
ये भी
है रेटिना से जुडी कुछ बिमारियां
इंफेक्शियस
रेटिनीटिस- इस बिमारी में रेटिना में वायरस, बैक्टीरिया, फंगी या
पैरासाइट की वजह से इंफेक्शन हो जाता है। इंफेक्शन की वजह से आंख में कई अन्य
प्रकार की समस्या नजर आने लगती है। समय रहते इंफेक्शन से आंखों को बचाने के लिए
ट्रीटमेंट बेहद जरूरी है।
कोरोइड
डिटेचमेंट-कोरोइड आंख के अंदर मौजूद ब्लड वेसल्स होती है जोकि आंख की बेक वॉल और
रेटिना को जोड़ती है। इसका सबसे महत्वपूर्ण काम आंख के बाहरी हिस्से को ऑक्सीजन और
पोषक तत्व पहुंचाने का होता है। लेकिन फ्लूड या ब्लड की वजह से कई बार यह अपनी जगह
से हट जाता है। इसे ही कोरोइड डिटेचमेंट कहते है। यह रोग भी काफी देखने को मिलता
है।
यह है
नई तकनीक
रेटिना
के क्षतिग्रस्त होने पर सिलिकॉन ऑयल से रिपेयर करने की तकनीक ईजाद की है। इस तकनीक
में इंजेक्शन के माध्यम से रेटिना में सिलिकॉन ऑयल डाला जाता है। तीन महीने तक सिलिकॉन
ऑयल रेटिना में ही रहता है और रेटिना के विकार ठीक करता है। जब रेटिना ठीक हो जाता
है तो ऑपरेशन की मदद से सिलिकॉन ऑयल को निकाल दिया जाता है।
ध्यान
रहें प्रोटीन सप्लीमेंट और स्टेराइड है आंखों के लिए खतरनाक
बॉडी
बनाने के लिए प्रोटीन सप्लीमेंट का इस्तेमाल करने वाले युवाओं के लिए अधिक समय तक
प्रोटीन पाउडर इस्तेमाल करना काफी खतरनाक है। चिकित्सक बताते है कि प्रोटीन
सप्लीमेंट से आंखों का इंट्रा आक्यूलर प्रेशर अत्याधिक बढ़ जाता है। इंट्रा
आक्यूलर प्रेशर बढ़ने की वजह से काला मोतिया होने का खतरा भी बढ़ जाता है। इतना ही
नहीं, जिम
करने वाले युवा बॉडी बनाने के लिए स्टेराइड का भी इस्तेमाल करते हैं, आंख के लिए नियमित स्टेराइड इस्तेमाल करना भी जहर के समान है। यह भी आंखों
का इंट्रा आक्यूलर प्रेशर बढाता है।
(दिल्ली
स्थित अभियान हाई सेंटर की नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ.मेघा से बातचीत पर आधारित)
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