नवजात
शिशु की पहली गुरु के साथ-साथ उसकी जीवनदाता होती है मां। मां शब्द को परिभाषित
करना लगभग असंभव-सा है क्योंकि मां खुद में ही गागर में सागर जैसी होती है। लेकिन
कुछेक लोग ऐसे भी है जिन्होंने मां को परिभाषित करने का प्रयास किया है। बात शायरी
और गजल की करें तो शायरों की दुनिया में अकेले मुनव्वर राना ही ऐसे शायर है जिन्होंने अपनी गजल और शायरी से मां को संबोधित
किया है और अपने इस प्रयास में सफल भी रहे। आज मुनव्वर एक
जाने माने शायर है और विदेशों तक में मुशायरों में शरीक होने पहुंचते हैँ। मुनव्वर
साहब ने हमारे साथ साझा किए जिंदगी के कुछ खट्टे मिठे पल-
गजल
और शायरी में मां क्यों?

चलती
फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने
जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखि है
जो
कुछ भी हूं मां की बदौलत हूं
शायरी
के कंसेप्ट की बात हो या फिर किसी नए विचार की। मां ही थी जिससे मुझे यह सब मिला
और मैं लिखते-लिखते यहां तक पहुंचा। मेरे शेरों में मां का बहुत बड़ा योगदान है।
मां
का कर्ज उतारे नही उतर सका
जिस
तरह एक मां अपने बच्चों को पालती है, परेशानी में रहते हुए भी अपने बच्चों पर आंच नही
आने देती। बच्चों को अच्छी तालीम, संस्कार भी मां से ही
मिलते हैँ। ऐसा जज्बा और किस रिश्ते में मिल सकता है? बच्चा बड़ा भी हो जाए तो भी मां उसके साथ साए की
तरह रहना चाहती है। कभी उससे नाराज नही होती। इस पर मैंने एक शेर भी कहा था-
लबों
पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक
माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
नसीबवाले
है वो जिनके साथ मां रहती है
कल्चर
बदल रहा है, शहरों
में घर छोटे होते है, एकांकी परिवार हो रहे हैं, उस मां को जिसने जन्म दिया, को भी लोग गांव भेज देते
हैं और भूल जाते हैं मां का कर्ज जोकि उतारे नही उतर सकता। मैं नसीबवाला हूं कि
मां मेरी साथ रहती है।जिनके साथ मां रहती है समझों उनके साथ भगवान रहता है। मां
ऐसी होती है कि उसका बच्चा कुछ भी गलत करें तो भी नाराज नही होती।
इस
तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ
बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
जब
अम्मा ने समझाया था

बच्चा
कभी मां की नजरों में बुढ़ा नही होता
हमने
अपनी पांचों बेटियों और एक बेटी की शादी कर दी। एक दिन ख्याल आया कि इंशा-अल्ला
हमने अपने फर्ज अदा कर लिए है। किसी से कभी मांगना नही पड़ा, सबकुछ ठीकठाक हो गया। जिंदगी को
भी अच्छे से बिताया। ये मां की दुआएं ही थी कि हमने अपनी जिंदगी इतनी शानदार तरीके
से गुजारी। एक दिन मैंने मां को कहा कि मां अब मैं बूढ़ा हो रहा हूं तो मेरे रूकने
से पहले ही मां ने जवाब दिया कि जिसकी मां जिंदा हो उसका बेटा बूढ़ा नही होता। बाद
में मैंने एक शेर भी कहा था-
अभी
ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा
मैं
जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
मुनव्वर राना फिलहाल बिमार है। बोला नही जा रहा था, लेकिन जैसे-जैसे बातचीत का
सिलसिला शुरू हुआ तो मानों उन्हें अपने दर्द का एहसास भी खत्म सा हो गया। मां आएशा
खातून का जहां भी जिक्र आता, वही उनका शुक्रियादा करना नही
भूले। कहते हैं मां 82 साल की हो गई है मगर अभी भी सोचता हूं कि बच्चा बनकर मां से
लिपट जांऊ। इसी से पता चलता है उनका मां के प्रति प्रेम और लगन। बातचीत के बाद जब
उन्हें कहा गया कि आपके जल्द से जल्द स्वस्थ्य होने की प्रार्थना करता हूं तो भी
चलते-चलते एक शेर यह कह गए-
अभी
जिंदा है मां मेरी मुझे कुछ भी नही होगा
मैं
घर से जब निकलता हूं, दुआ भी साथ चलती है
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